Hartalika Teej Vrat Katha 2024 (हरतालिका तीज व्रत कथा )
हरतालिका तीज व्रत (Hartalika Teej Vrat) : हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल हरतालिका तीज का व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। 2024 में हरतालिका तीज का व्रत 6 सितंबर को मनाया जाएगा।
हरतालिका तीज एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। इसे आमतौर पर पतिव्रता महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन के लिए रखती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं और भगवान शिव और पार्वती की पूजा करती हैं।
Hartalika Teej Vrat Katha 2024 (हरतालिका तीज व्रत कथा )
Hartalika Teej Vrat Katha 2024 (हरतालिका तीज व्रत कथा )
Table of Contents
हरतालिका तीज व्रत 2024 (Hartalika Teej Vrat)
त्यौहार का नाम ( Festival Name ) | हरतालिका तीज ( Hartalika Teej) |
तिथि (Tithi of the Hindu Calendar ) | भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि |
दिनांक (Date ) | 6 सितंबर (6 September ) |
पूजा मुहूर्त (Muhurat ) | 6 सितंबर सुबह 6:05 बजे से रात 8:00 बजे तक |
हरतालिका तीज 2024 | https://yuvamantra.com/hartalika-teej-2024/ |
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हरतालिका तीज पूजा विधि (Hartalika Teej Vrat Rules)
- व्रत का संकल्प:
- इस दिन प्रात:काल उठकर नहा-धोकर व्रत का संकल्प लें।
- संकल्प के दौरान स्वच्छ मन और भाव से भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करें।
- हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं ,प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय .
- पूजा स्थल को स्वच्छ करें और वहां एक चौकी पर भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या चित्र रखें या फिर शिव, पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा बालू रेत से बनाये।
- नैवेद्य तैयार करें:
- पूजा के लिए विशेष पकवान जैसे मिठाई, फल और विशेष पूजा सामग्री तैयार करें।
- पूजा की तैयारी:
- भगवान शिव और माता पार्वती को फूल, चावल, दीपक, अगरबत्ती, और अन्य पूजा सामग्री अर्पित करें।
- व्रति की एक विशेष पूजा होती है जिसमें महिलाएं कथा सुनती हैं और व्रत के महत्व को समझती हैं।
- कथा सुनना:
- हरतालिका तीज की कथा सुनना बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह कथा माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह के संबंध में होती है और व्रति को धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है।
- रात्री जागरण:
- इस दिन महिलाएं रातभर जागकर पूजा करती हैं और भजन-कीर्तन करती हैं।
हरतालिका तीज की पूजा से संबंधित मान्यता है कि इस दिन व्रति द्वारा की गई पूजा और व्रत से उन्हें अखंड सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन मिलता है।
हरतालिका तीज व्रत कथा (Hartalika Teej Vrat Katha
जिनके दिव्य केशों पर आकं के फूलों की माला शोभा देती है और जिन भगवान शंकर के मस्तक पर चंद्र और गले में मुंडों की माला पड़ी हुई है, जो माता पार्वती दिव्य वस्त्रों से तथा भगवान शंकर दिगंबर वेष धारण किए हैं, उन दोनों भवानी शंकर को नमस्कार करता हूं।
कैलाश पर्वत के सुंदर शिखर पर माता पार्वतीजी ने महादेवजी से पूछा- हे महेश्वर! मुझसे आप वह गुप्त से गुप्त बातें बताइए, जो सभी के लिए सरल और महान फल देने वाली है।
हे नाथ! यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो आप मुझे दर्शन दें। हे जगत नाथ! आप आदि, मध्य और अंत रहित हैं, आपकी माया का कोई पार नहीं है। आपको मैंने किस भांति प्राप्त किया है? कौन से व्रत, तप या दान के पुण्य फल से आप मुझको वर रूप में मिले?
महादेवजी बोले- हे देवी! मैं आपके सामने उस व्रत के बारे में कहता हूं, जो परम गुप्त है, जैसे तारागणों में चंद्रमा और ग्रहों में सूर्य, वर्णों में ब्राह्मण, देवताओं में गंगा, पुराणों में महाभारत, वेदों में साम और इंद्रियों में मन श्रेष्ठ है। वैसे ही पुराण और वेद सबमें इसका वर्णन आया है। जिसके प्रभाव से तुमको मेरा आधा आसन प्राप्त हुआ है। हे प्रिये! उसी का मैं तुमसे वर्णन करता हूं, सुनो- भाद्रपद (भादों) मास के शुक्ल पक्ष की हस्त नक्षत्र के दिन इस व्रत का अनुष्ठान मात्र करने से सभी पापा का नाश हो जाता है। तुमने पहले हिमालय पर्वत पर इसी महान व्रत को किया था, जो मैं तुम्हें सुनाता हूँ।
पार्वतीजी बोलीं- हे प्रभु, इस व्रत को मैंने किसलिए किया था, यह मुझे सुनने की इच्छा है सो, कृपा करके कहें। शंकरजी बोले- आर्यावर्त में हिमालय नामक एक महान पर्वत है, जहां अनेक प्रकार की भूमि अनेक प्रकार के वृक्षों से सुशोभित है, जो सदैव बर्फ से ढके हुए तथा गंगा की कल-कल ध्वनि से शब्दायमान रहता है। हे पार्वतीजी! तुमने बाल्यकाल में उसी स्थान पर परम तप किया था और बारह वर्ष तक के महीने में जल में रहकर तथा बैशाख मास में अग्नि में प्रवेश करके तप किया।
सावन के महीने में बाहर खुले में निवास कर अन्न त्याग कर तप करती रहीं। तुम्हारे उस कष्ट को देखकर तुम्हारे पिता को बड़ी चिंता हुई। चिंता में वह सोचने लगे कि मैं इस कन्या का विवाह किससे करूं। एक दिन नारादजी वहां आए और देवर्षि नारद ने तुम शैलपुत्री को देखा।
तुम्हारे पिता हिमालय ने देवर्षि को अर्घ्य, पाद्य, आसन देकर सम्मान सहित बिठाया और कहा हे मुनीश्वर! आपने यहां तक आने का कष्ट कैसे किया, कहें क्या आज्ञा है?
नारदजी बोले- हे गिरिराज! मैं विष्णु भगवान का भेजा हुआ यहां आया हू। तुम मेरी बात सुनो। आप अपनी कन्या को उत्तम वर को दान करें। ब्रह्मा, इंद्र, शिव आदि देवताओं में विष्णु भगवान के समान कोई भी उत्तम नहीं है। इसलिए मेरे मत से आप अपनी कन्या का दान भगवान विष्णु को ही दें।
हिमालय बोले- यदि भगवान वासुदेव स्वयं ही कन्या को ग्रहण करना चाहते हैं और इस कार्य के लिए ही आपका आगमन हुआ है तो वह मेरे लिए गौरव की बात है।
मैं अवश्य उन्हें ही दूंगा। हिमालय का यह आश्वासन सुनते ही देवर्षि नारदजी आकाश में अन्तर्धान हो गए और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। नारदजी ने हाथ जोड़कर भगवान विष्णु से कहा, प्रभु! आपका विवाह कार्य निश्चित हो गया है। इधर हिमालय ने पार्वतीजी से प्रसन्नता पूर्वक कहा- हे पुत्री मैंने तुमको गरुड़ध्वज भगवान विष्णु को अर्पण कर दिया है।
पिता के इन वाक्यों को सुनते ही पार्वतीजी अपनी सहेली के घर गईं और पृथ्वी पर गिरकर अत्यंत दुखित होकर विलाप करने लगीं। उनको विलाप करते हुए देखकर सखी बोली- हे देवी! तुम किस कारण से दुखी हो, मुझे बताओ। मैं अवश्य ही तुम्हारी इच्छा पूरी करुंगी। पार्वती बोली- हे सखी! सुन, मेरी जो मन की अभिलाषा है, सुनाती हूं। मैं महादेवजी को वरण करना चाहती हूं, मेरे इस कार्य को पिताजी ने बिगाड़ना चाहा है। इसलिये मैं निसंदेह इस शरीर का त्याग करुंगी। पार्वती के इन वचनों को सुनकर सखी ने कहा- हे देवी! जिस वन को तुम्हारे पिताजी ने न देखा हो तुम वहां चली जाओ।
तब देवी पार्वती! अपनी सखी का यह वचन सुन ऐसे ही वन को चली गई। पिता हिमालय ने तुमको घर पर न पाकर सोचा कि मेरी पुत्री को कोई देव, दानव अथवा किन्नर हरण करके ले गया है। मैंने नारद जी को वचन दिया था कि मैं पुत्री का भगवान विष्णु के साथ वरण करूंगा हाय, अब यह कैसे पूरा होगा? ऐसा सोचकर वे बहुत चिंतातुर हो मूर्छित हो गए। तब सब लोग हाहाकार करते हुए दौड़े और मूर्छा दूर होने पर गिरिराज से बोले कि हमें आप अपनी मूर्छा का कारण बताओ।
हिमालय बोले- मेरे दुख का कारण यह है कि मेरी रत्नरूपी कन्या को कोई हरण कर ले गया या सर्प ने काट लिया या किसी सिंह ने मार डाला। वह ने जाने कहां चली गई या उसे किसी राक्षस ने मार डाला है। इस प्रकार कहकर गिरिराज दुखित होकर ऐसे कांपने लगे जैसे तीव्र वायु के चलने पर कोई वृक्ष कांपता है। तत्पश्चात हे पार्वती, तुम्हें गिरिराज साथियों सहित घने जंगल में ढूंढने निकले।
तुम भी सखी के साथ भयानक जंगल में घूमती हुई वन में एक नदी के तट पर एक गुफा में पहुंची। उस गुफा में तुम आनी सखी के साथ प्रवेश कर गईं। जहां तुम अन्न जल का त्याग करके बालू का लिंग बनाकर मेरी आराधना करती रहीं। उस समय पर भाद्रपद मास की हस्त नक्षत्र युक्त तृतीया के दिन तुमने मेरा विधि विधान से पूजन किया तथा रात्रि को गीत गायन करते हुए जागरण किया। तुम्हारे उस महाव्रत के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मैं उसी स्थान पर आ गया, जहां तुम और तुम्हारी सखी दोनों थीं। मैंने आकर तुमसे कहा हे वरानने, मैं तुमसे प्रसन्न हूं, फिर तुम मुझसे वरदान मांग। तब तुमने कहा कि हे देव, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो आप महादेवजी ही मेरे पति हों। मैं ‘तथास्तु’ ऐसा कहकर कैलाश पर्वत को चला गया और तुमने प्रभात होते ही मेरी उस बालू की प्रतिमा को नदी में विसर्जित कर दिया।
हे शुभे, तुमने वहां अपनी सखी सहित व्रत का पारायण किया। इतने में तुम्हारे पिता हिमवान भी तुम्हें ढूंढते ढूंढते उसी घने वन में आ पहुंचे। उस समय उन्होंने नदी के तट पर दो कन्याओं को देखा तो ये तुम्हारे पास आ गए और तुम्हें हृदय से लगाकर रोने लगे। बोले, बेटी तुम इस सिंह व्याघ्रादि युक्त घने जंगल में क्यों चली आई?
तुमने कहा हे पिता, मैंने पहले ही अपना शरीर शंकरजी को समर्पित कर दिया था, लेकिन आपने नारदजी को कुछ और बोल दिया इसलिए मैं महल से चली आई। ऐसा सुनकर हिमवान ने तुमसे कहा कि मैं तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध यह कार्य नहीं करूंगा। तब वे तुम्हें लेकर घर को आए और तुम्हारा विवाह मेरे साथ कर दिया।
हे प्रिये! उसी व्रत के प्रभाव से तुमको मेरा अर्द्धासन प्राप्त हुआ है। इस व्रतराज को मैंने अभी तक किसी के सम्मुख वर्णन नहीं किया है। हे देवी! अब मैं तुम्हें यह बताता हूं कि इस व्रत का यह नाम क्यों पड़ा? तुमको सखी हरण करके ले गई थी, इसलिए हरतालिका नाम पड़ा।
पार्वतीजी बोलीं- हे स्वामी! आपने इस व्रतराज का नाम तो बता दिया लेकिन मुझे इसकी विधि और फल भी बताइए कि इसके करने से किस फल की प्राप्ति होती है।
तब भगवान शंकरजी बोले- सौभाग्य की इच्छा रखने वाली महिलाओं को यह व्रत पूरे विधि विधान के साथ करना चाहिए। व्रत में केले के खंभों से मंडप बनाकर उसे वन्दनवारों से सुशोभित करें। उसमें विविध रंगों के उत्तम रेशमी वस्त्र की चांदनी ऊपर तान दें। चंदन आदि सुगंधित द्रव्यों का लेपन करके महिलाएं एकत्रित हों। शंख, भेरी, मृदंग आदि बजावें। विधि पूर्वक मंगलाचार करके श्री गौरी-शंकर की बालू निर्मित प्रतिमा स्थापित करें। फिर भगवान शिव पार्वतीजी का गंध, धूप, पुष्प आदि से विधिपूर्वक पूजन करें।
अनेकों नैवेद्यों का भोग लगावें और रात्रि को जागरण करें। नारियल, सुपारी, जंवारी, नींबू, लौंग, अनार, नारंगी आदि ऋतुफलों तथा फूलों को एकत्रित करके धूप, दीप आदि से पूजन करके कहें-हे कल्याण) स्वरूप शिव! हे मंगलरूप शिव! हे मंगल रूप महेश्वरी! हे शिवे! सब कामनाओं को देने वाली देवी कल्याण रूप तुम्हें नमस्कार है।
कल्याण स्वरुप माता पार्वती, हम तुम्हें नमस्कार करते हैं। भगवान शंकरजी को सदैव नमस्कार करते हैं। हे ब्रह्म रुपिणी जगत का पालन करने वाली “मां” आपको नमस्कार है। हे सिंहवाहिनी! मैं सांसारिक भय से व्याकुल हूं, तुम मेरी रक्षा करो। हे महेश्वरी! मैंने इसी अभिलाषा से आपका पूजन किया है। हे पार्वती माता आप मेरे ऊपर प्रसन्न होकर मुझे सुख और सौभाग्य प्रदान कीजिए। इस प्रकार के शब्दों द्वारा उमा सहित शंकर जी का पूजन करें। विधिपूर्वक कथा सुनकर गौ, वस्त्र, आभूषण आदि ब्राह्मणों को दान करें। इस प्रकार से व्रत करने वाले के सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
FAQ
Q : हरतालिका नाम क्यूँ पड़ा ?
Ans : माता गौरी के पार्वती रूप में वे शिव जी को पति रूप में चाहती थी, जिस हेतु उन्होंने कठोर तपस्या की थी उस वक्त पार्वती की सहेलियों ने उन्हें अगवा कर लिया था। इस करण इस व्रत को हरतालिका कहा गया हैं क्यूंकि हरत मतलब अगवा करना एवं तालिका मतलब सहेली अर्थात सहेलियों द्वारा अपहरण करना हरतालिका कहलाता हैं।
Q : हरतालिका तीज कब मनाई जाती है ?
Ans :हरितालिका तीज भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है।
Q : हरतालिका तीज 2024 में कब है ?
Ans : यह इस वर्ष 6 सितंबर दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी।
Q : हरतालिका तीज पूजा मुहूर्त कब है ?
Ans : 6 सितंबर सुबह 6:05 बजे से रात 8:00 बजे तक